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खामणा कुलकम्
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फासगठिएण जे चिय, परदाराइसु गच्छमाणेणं । जे दूमिय दूहविश्रा, ते वि य खामेमि तिविहेणं ॥१५॥
स्पर्शेन्दिय का शिकार मैं जिसके द्वारा परदारा वैश्या कुमारी अदि में मैथुन सेवित करते समय जिनको संताप दिया हो अप्रीति उपजाई हो मारे हो, उन सब से मैं त्रिविध प्रकार से क्षमा मांगता हूं ॥ १५ ॥ चक्खिदिय-धाणिदिय, सोइंदियवसगएण जे जीवा । दुक्खंमि मए ठविया, ते हं खामेमि तिविहेणं ॥१६॥
चक्षु-घ्राण-श्रवणेन्द्रिय वश मैंने किसी जीव को दुःख दिया हो उन सवसे मैं त्रिविध प्रकार से क्षमा मांगता हूं। सामित्तं लहिउणं, जे बद्धा घाइया य मे जीवा । सवराह-निरखराहा, ते वि य तिविहेण खामेमि ॥१७
स्वामित्व के कारण राजा मन्त्री आदि के रूप में सत्ताधीश बनकर मैंने जो अपराधी या निरपराधी किसी जीवों को बन्धन से बांधे हो, केद किये हो, मारे हो या मराये हो उन सबसे विविध प्रकार से क्षमा चाहता हूं ॥१७॥