________________
कर्म कुलकम्
१४२ ]
कराहस्स वासुदेवस्स, मरणं एगा गियो वणे । भाउयायो कहं हुतं ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥ १८ ॥
जो कर्म नहीं होता तो श्रीकृष्ण का मरण एकाकी अवस्था में वन में स्वयं के बन्धु द्वारा क्यों होता ! ॥ १८ ॥ १
नावारुदस्स उवसग्गो, वद्धमाणस्स दारुणो । खुदाढायो कहं हुं तो ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥ ११ ॥
जो कर्म का फल नहीं भुगतना पडता होता तो श्रीवर्धमान को सुदंष्ट्र यक्ष से भयंकर उपसर्ग क्यों होते ?
॥१६॥
पासनाहस्स उवसग्गो, गाढो तित्थंकरस्स वि । कमठा कहं हु तो ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥२०॥
तीर्थङ्कर परमात्मा श्री पार्श्वनाथ भनवान को कमठ से क्रूर उपसर्ग सहन करना पड़ा है वह भी पूर्व कर्म परिपाक ही है, अतः कर्म को मानना ही पड़ेगा ॥ २० ॥