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दश श्रावक कुलकम्
[१६] ॥ दश श्रावक कुलकम् ॥ वाणियगाम पुरम्मि, पाणंदो जो गिहवई श्रासी। सिवनंदा से भजा, दस सहस्स गोउला चउरो॥१॥ ___ वाणिज्य ग्राम' नगर में आनन्द नाम का गृहस्थ था, उसके शिवानन्दा नाम की स्त्री थी और दश दश हजार गायों के चार गोकुल थे ॥१॥ निहि विवहार कलंतर ठाणेसु कणय कोडिबारसगं। सो सिरिवीरजिणेसरपयमूले सावत्रो जायो॥२॥ ___उसके पास में भंडार तथा व्यापार में और ब्याज के धन्धे में चार चार करोड कमाये हुए कुल बारह करोड़ स्वर्ण सिक्के (मुद्राएँ) थी । वह श्री महावीर जिनेश्वर के चरण सेवी श्रावक थे ।। २॥ चंपाई कामदेवो, भद्दाभन्जो सुसावो जानो। छग्गोउल अट्ठारस, कंचणकोडीण जो सामी ॥३॥
चम्पापुरी में भद्रा नाम की स्त्री का पति कामदेव महावीरस्वामी का सुश्रावक हुआ । वह दश दश हजार गायों के छ गोकुल और अठारह करोड सोनैया का स्वामी था ।।३।।