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इन्द्रियादि विकार निरोध कुलकम्
१४] ॥ इन्द्रियादि विकारनिरोधकुलकम् ॥ रजाइभोगतिसिया,
अट्टवसट्टा पडंति तिरिएसु। जाईमएण मत्ता,
किमिजाई चेव पार्वति ॥१॥
राज्यादि भोगों की तृष्णा वाले आर्तध्यान से वशीभूत होकर तिर्यश्च में पड़ते हैं, तथा जातिमद से मदोन्मत्त हुए कृमि की जाति में जन्म लेते हैं ।। १ ।।
कुलमत्ति सियालित्ते
उट्टाईजोणि जंति रूवमए। बलमत्ते वि पयंगा,
बुद्धिमए कुक्कडा हुंति
॥२॥
कुल मद करने वाले शृङ्गाल. योनि में तथा रूप का मद करने वाले ऊँटादि की योनि में जन्म लेते हैं । वल का मद करने वाले पतंग तथा बुद्धिमद वाले मुर्गे बनते हैं ॥२॥