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इन्द्रियादि विकार निरोध कुलकम्
किरिबासु अप्पमाश्रो,
सो धम्मो सिवसुहो लोए ॥६॥ - हे जीव ! जिस धर्म में विषयों का विराग, कषायों का त्याग, गुणों में प्रीति तथा क्रियाओं में अप्रमाद होता है वही धर्म विश्व में मोचसुख देने वाला है। ह॥
॥ इति श्री इन्द्रियादि विकार निरोध कुलकस्य
हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ॥