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इन्द्रियादि विकार निरोध सकम्
माणसदंडेणं पुण,
तंडुलमच्छा हवंति मणदुट्टा । सुयतित्तरलावाई, १. होउ वायाइ बझति ॥५॥
मन दण्ड से दुष्ट मन वाले तंडुलिया मत्स्य योनि में जन्म धारण करते हैं। वचन दण्ड से शुक, तीतर और लावरादि पक्षीओं होकर बन्धन में पड़ते हैं ।। ५ ॥ कारण महामच्छा,
मंजारा(उ) हवंति तह कूरा। तं तं कुणंति कम्म,
जेण पुणो जंति नरएसु ॥६॥ काय दण्ड द्वारा मनुष्य कर मत्स्य की योनि में तथा बिल्ली की योनि में जन्म धारण करता है। तथा भव भव में मन वचन काया से वही कर्म करता हुआ मर कर नरक में जन्मता है ॥६॥ फासिंदियदोसेणं,
वणसुयरत्तम्मि जति जौवा वि ।