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इन्द्रियादि विकार निरोध कुलकम्
[ १३.५ ।।
जीहा लोलुप वग्घा, घाणवसा सप्पजाईसु
॥७॥ स्पर्शेन्द्रिय दोष से जीव वन में वनचर भुण्ड की योनि में जन्म धारण करता है, र.नेन्द्रिय दोष से लोलुप्त जीव व्याघ्र मांसाहारी होकर जन्मता है, घ्राणेन्द्रिय दोष से सर्प जाति में जन्म धारण करता है ।। ७ ॥ नयणिदिए पयंगा,
हंति मया पुण सवणदोसेणं । एए पंच वि निहणं,
वयंति पंचिदिएहिं पुणो ॥८॥ चक्ष इन्द्रिय दोष से पतंगिया तथा श्रोत्रेन्द्रिय दोष से मृग योनि में जन्म लेता है, तथा पांचों प्रकार के जीव दूसरे भवों में भी वे पांचों इन्द्रियों के द्वारा पुनः नष्ट होकर नरक में जन्म धारण करते हैं ।।८।। जत्थ य विसय विराश्रो,
कसायचायो गुणेसु अणुरायो।