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श्री गौतम कुलकम्
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सुनने वाले को रुचिकर न लगे ऐसा वचन तो विलाप के समान होता है, एकाग्रता हीन पुरुष को कुछ कहना विलाप के समान है, तथा परवश चित्त है जिसका उसे भी कहना विलाप के समान है, एवं कुशिष्य को भी कहना विलाप के समान है ॥ ७॥ दुट्ठा दंनिवा डपरा हवंति,
विजाहरा मंत परा हवंति । मुक्खा नरा कोव परा हवंति,
सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ॥८॥ दुष्ट राजा दण्ड देने में तत्पर होते हैं, विद्याधर मन्त्र साधना में तत्पर होते हैं, मूर्ख पुरुष कोप करने में तत्पर होते हैं, उत्तम साधु तत्व साधने में तत्पर होते हैं ॥८॥ सोहाभवे उग्गतवस्स खंती,
समाहि जोगो पसमस्स सोहा । नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा, __ सीसस्स सोहा विणए पवित्ती ॥१॥
क्षमा उग्रतप से सुशोभित होती है, समाधियोग में उपशम की शोभा है, ज्ञान और शुभध्यान चरित्र की शोभा है ॥३॥