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जीवानुशास्ति कुलकम्
रे जीव ! कम्मभरियं, उवएसं कुणासि मूढ ! विवरियं । दुग्गइ गमणमणाणं,
एस for fees (cas) परिणामो ॥ ३ ॥ हे मृढ जीव ! तू पाप कर्म से भरे विपरीत उपदेश कर रहा है । दुर्गति में जाने वालों के मन में ऐसे ही दुष्परिणाम उत्पन्न होते हैं और यह भावी दुर्गति का सूचक है || ३ || रे जीव ! तुमं सीसे,
सबणा दाऊण सुणसु मह वयणं । जं सुक्खं न विपाविसि, ता धम्मविवज्जियो नूगां
॥ ४ ॥
हे जीव ! तू कान खोल कर मेरा वचन सुन ! तू जो सुख को प्राप्त नहीं कर रहा है इसका तात्पर्य ही यह है कि तू धर्म रहित है । धर्म नहीं तो सुख भी नहीं ॥ ४ ॥
रे जीव ! मा विसाय,
जाहि तुमं पिच्छिऊण पर रिद्धी ।
धम्मरहियाण कुत्तो ?, संपज्जइ विविहसंपत्ती
॥ ५ ॥