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श्रीमात्मावबोध कुलकम्
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जत्थ कसाया चोरा,
___महावया सावया सया घोरा। रोगा दुट्ठभुभंगा,
श्रासासरित्रा घणतरंगा ॥३३॥ भव रूपी दुर्गम दुर्ग कैसा है ? जहां चार कषाय चोर के समान स्थित है। जहां आपत्ति रूपी श्वापद निवास करते हैं जहां रोग रूपी सर्प निवास करते हैं। तथा विकल्प रूपी आशानदी हमेशा पहती है ॥ ३३ ॥ चिताडवी सकट्ठा,
बहुलतमा सुदरी दरी दिट्टा। रवाणी गई अणेगा,
सिहराइं अट्ठमयभेश्रा ॥३४॥ जहां चिन्ता रूपी काष्ठ युक्त अटवी चारों ओर खडी है। जहां महान अन्धकार वाली गुफा में अज्ञान रूपी स्त्री निवास करती है। चार गति रूप खाइयां है, आठ मद रूपी शिखर हैं ॥ ३४ ॥ रयणिरो मिच्छत्तं,
मणदुक्कडो सिला ममत्तं च।