________________
श्री प्रात्माषबोध कुलकम्
[११६
मुटठं नाणाइधणं,
तुमं पि छूढो कुगइ कूवे ॥२८॥ इन्होंने तुम्हारे विवेक रूपी मन्त्री की हत्या कर दी है। तुम्हारी चतुरंगिणी ( मनुष्य जन्म, धर्म श्रवण, श्रद्धा तथा संयमादि ) को भी नष्ट कर दिया है। धर्मचक्र को भी भेदित कर दिया है। ज्ञान रूप रत्नों की चोरी कर ली है, और तुम्ही को दुर्गतिरूपी कूप में डाल दिया है ॥२८॥ इत्ति थकालं हुतो,
पमाय निदाइ गलिय चेअन्नो। जइ जग्गियोसि संपइ, ___ गुरुवयणा ता न वेएसि ? ॥२॥
इतने समय तक तू प्रमाद रूपी निद्रा से गलित चेतना वाला रहा किन्तु अब तो तू सद्गुरु वचनों से जाग गया है फिर भी तू अपना स्वरूप क्यों नहीं पहचानता ? ॥ २६ ॥ लोगपमाणोसि तुम,
नाण मोऽणं तवीरियोसि तुमं । नियरजठिइं चिंतसु,
धम्मझाणासणासीणो ॥३०॥