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श्री गौतम कुलकम्
___जीव हिंसा में आसक्त हो तो उत्तम धर्म का नाश होता है। चोरी में आसक्त होने पर शरीर का नाश होता है । परस्त्री में आसक्त होने पर सर्व गुणों का नाश होता है। इतना ही नहीं वह मर कर भी अधम गति में जाता है ॥ १८ ॥ दाणं दरिदस्स पहुस्स खंति,
इच्छा निरोहो य सुहोइयस्स। तारुण्णए इंदिय निग्गहो य,
चत्तारि एत्राणि सुदुक्कराणि ॥१॥ दरिद्र अवस्था में दान देना अति दुष्कर होता है । सत्ता प्राप्ति होने पर नमावान् होना मुश्किल है, सुखोचित प्राणी को इच्छाओं का रोकना दुष्कर तथा तारुण्यावस्था में इन्द्रियों का रोकना, निग्रह करना मुश्किल होता है । ये चारों अति दुष्कर कार्य जानना चाहिये । १९ ।। असासियं जीवियमाहु लोए,
धम्मं चरे साहु जिणोवइट। धम्मो य ताणं सरणं गई य,
धम्मं निसेवित्तु सुहं लहंति ॥२०॥