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११६ ] श्री आत्मावबोध कुलकम् मोहेण भवे दुरिए,
बंधित खित्तोसि नेह निगडेहिं । बंधव मिसेण मुक्का,
पाहरिया तेसु को रायो ? ॥२२॥ मोहरूपी राजा ने तुमको स्नेह रूप बेडियों से बाँध कर संसार रूपी कारागृह में पटक रखा है, तथा माता, पिता, भाई, बन्धु, आदि रक्षक के बहाने कारावास से भाग न जाये इस हेतु चौकीदारी का काम करते हैं। फिर भी मृढ इन पहरेदारों में स्नेह क्यों रखता है ? ॥२२॥ धम्मो जणो करुणा,
माया माया विवेगनामेणं । खंति पिया सुपुत्तो, ___ गुणो कुटुंबं इमं कुणसु ॥२३॥
धर्म ही तुम्हारा पिता, करुणा ही तुम्हारी माता विवेक ही तुम्हारा भाई, क्षमा ही तुम्हारी पत्नी तथा ज्ञान दर्शन तथा चारित्र्य ही तुम्हारे उत्तम पुत्र है। इस प्रकार तू तुम्हारा अन्तरंग कुटुम्ब बना ॥ २३ ॥