________________
श्री गौतम कुलकम्
[ १०५
-
संसार में जीवितव्य को अशाश्वत् कहा गया है । अतः हे भव्यो! जिनेश्वर उपदेश का अनुपालन करना चाहिये, क्योंकि धर्म ही त्राण, शरण तथा श्रेष्ठ गति को देने वाला होता है । ऐसे धर्म को जो प्राणी सेवन करता है निश्चय ही उसे शाश्वत् गति प्राप्त होती है। नोट-इस कुलक के मूल रचयिता प्राचीन गौतम
मुनि है । ऐसा आरम्भ में बताया गया है।
इस कुलक पर खरतरगच्छाचार्य जिन हंससूरि शिष्य श्री पुण्यसागर उपाध्याय के शिष्य उ० पद्मराज गणि के शिष्य श्री ज्ञानतिलक गणि ने वि० सं० १६६० में वृत्ति की रचना की थी, ६६ कथाओं द्वारा विषय सुवोध बनाया गया है।
॥ इति श्री गौतम कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ॥