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१०२] श्री गौतम कुलकम् जे साहुणो ते अभिनंदियव्वा,
जे निम्ममा ते पडिलाभियव्वा ॥१४॥ जो धर्मवन्त हो उन्हें निश्चय ही सेवन करना चाहिये, जो पण्डित हो उन्हें ही पूछने योग्य पूछना चाहिये, जो साधु पुरुष हो उन्हीं की स्तुति करना चाहिये और जो निर्मोही हो उन्हें ही आहार आदि का दान देना चाहिये । पुत्ता य सीसा य समं विभक्ता,
रिसी य देवा य समं विभक्ता। मुक्खा तिरिक्खा य समं विभक्ता,
मुत्रा दरिदा य समं विभक्ता ॥१५॥
श्रेष्ठ पुरुषों ने सुपुत्र तथा सुशिष्य दोनों ही समान माने हैं, ऋषिओं तथा देवों को समान कहा है। मूर्ख और तिर्यश्च दोनों ही समान गिने गये हैं। मृत तथा दरिद्री दोनों ही समान गिने गये हैं ॥ १५ ॥
सव्वा कला धम्म कला जिणाइ,
सव्वा कहा धम्म कहा जिणाइ।