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१०.]
श्री गौतम कुलकम्
अभूसणो सोहइ बंभयारी,
अकिंचणो सोहइ दिक्खधारी। बुद्धिजुश्रो सोहइ रायमंती,
लजाजुयो सोहइ एगपत्ती ॥१०॥
ब्रह्मचारी आभूषण बिना भी सुशोभित होता है। दीक्षाधारी परिग्रह त्याग से सुशोभित होता है। राजा का मन्त्री बुद्धि युक्त होने पर ही सुशोभित होता है, लज्जालु मनुष्य एक पत्नी व्रत पालने से सुशोभित होते हैं ॥१०॥ अप्पायरी होइ अणवट्ठिअस्स,
अप्पाजसो सीलमपोनरस्स। अप्पा दुरप्पा अणविटठंयस्स,
अप्पा जिअप्पा सरणं गई थ ॥११॥ अनवस्थित चित्तवाला जो स्वयं अपनी आत्मा का शत्रु है, शीलवंत पुरुषों का आत्मा ही उनका यश है, असंजमी की स्वयं की आत्मा ही शत्रु है, तथा इन्द्रियों को जीत कर अपनी आत्मा को वश में करें, उस जितात्मा का वह स्वयं शरण तथा आश्रयी है ॥ ११ ॥