________________
६८ ]
श्री गौतम कुलकम्
-
-
सभिन्न वित्तं भयए अलच्छी,
सच्चेट्टियं संभयए सिरी य ॥५॥ विनयवंत तथा सौम्य प्रकृति वाले मनुष्य के लिये बुद्धि तत्पर रहती है क्रोधी तथा कुशीली अपकीर्ति का पात्र बनता है, व्रतभंगी अलक्ष्मी का पात्र बनता है तथा सत्य में स्थिर लक्ष्मी का पात्र बनता है ॥ ५ ॥ चयंति मित्ताणि नरं कयग्छ,
चयंति पावाई मुणि जयंतं । चयंति मित्ताणि नरं कयग्छ,
चयंति बुद्धी कुवियं मणुस्सं ॥६॥ कृतघ्न पुरुष को मित्र छोड देते हैं । जयणा वाले मुनि को पाप छोड देते हैं । सूखे हुए सरोवर को हंस छोड देते हैं । तथा कोपवन्त मनुष्य को बुद्धि छोड देती है ॥ ६ ॥ अरो अइत्थे कहिए बिलावो,
असपहारे कहिए बिलावो। विक्खित्त चित्ते कहिए बिलावो,
बहु कुसीसे कहिए बिलावो ॥७॥