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अभव्य कुलकम्
(१६) मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञानादिक शुभज्ञान की लब्धि, सुपात्र में दान (१६) समाधि मरण (२०) विद्याचारण तथा (२१)जंघाचारण की लब्धि (२२) मधुसर्पिलब्धि (२३)क्षीराश्रव लब्धि और अभव्य (२४) अक्षीण महानसी लब्धि भी नहीं प्राप्त कर सकता । तीर्थङ्कर तथा तीर्थंकर के शरीर तथा प्रतिमा में उपयोगी पृथ्वीकायादि भावों को भी प्राप्त नहीं करता ॥४-५॥ चउदसरयणत्तं पि,
पत्तं न पुणो विमाण सामित्तं । सम्मत्तनाण संयम
तवाइ भावा न भाव दुगे ॥६॥ (२६) चक्रवर्तिओं के चौदह रत्न (२७) विमानाधिपतित्व प्राप्त नहीं होता, फिर सम्यक् ज्ञान दर्शन चारित्र और तप आदि भावों तथा क्षायिक और क्षायोपशमिक दोनों भाव भी प्राप्त नहीं करते ॥ ६ ॥ अणुभवजुत्ता भत्ती,
जिणाण साहम्मियाण वच्छल्लं । न य साहेइ अभव्वो,
संवेगत्तं न सुकपक्वं ॥ ७॥