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प्रभव्य कुलकम् [८५ अधिष्ठायिका देवी तथा देवत्व (८) लोक.न्तिक देवत्व तथा देवपति पद न प्राप्त कर सकते हैं ॥२॥ तायत्तीससुरत्तं,
परमाहम्मियजुयलमणुअत्तं । संभिन्नसोय तह, पुवधराहारयपुलायत्तं
॥३॥ त्रायत्रिंशकदेवत्व, पन्द्रह जाति-परमाधामी देवत्व (१२) युगलिक मनुष्यपन, (१३) संभिन्नश्रोत लब्धि (१४) पूर्वधरलब्धि, (१५) आहारकलब्धि और पुलाकलब्धि इतने अभव्यों को प्राप्त नहीं होते ॥३॥ मइनाणाई सुलद्धी,
सुपत्तदाणं समाहिमरणतं। चारणदुगमहुसप्पियखीरासवखीणाणत्तं
॥४॥ तित्थयरतित्थपडिमा,
तणुपरिभोगाइ कारणे वि पुणो। पुढवाइय भावम्मि वि,
अभव्वजीवेहि नो पत्तं ||५||