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भाव कुलकम्
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देविंदविंदमहिनं,
इरा सो लहइ सिद्धिसुहं ॥२१॥ इस प्रकार दान शील तप और भावना विध चतुर्विध को जो धर्मात्मा शक्ति और भक्ति के अनुरूप उन्नास से करते हैं, वे इन्द्रों के समूह से पूजित ऐसे अक्षय मोक्ष सुख को अल्पकाल में प्राप्त कर सकते हैं।
इस कुलक में अन्तिम में ग्रन्थकार ने अपना नाम 'देवेन्द्र सूरि' अन्तः रूप से अभिलिखित किया है इनके खरे वचनों का पालन ही कल्याण का मार्ग है।
॥ इति श्री भाव कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ।।