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भाव कुलकम्
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हुई तथा लौटती हुई रानी ने भरपूर बहती हुई नदी से कहा था और नदी ने रास्ता दे दिया था। यह सब शुभ स्वाध्याय का ही कारण था ।। १६ ।। सिरिचंडरदगुरुणा,
ताडिज्जंतो वि दंडघाएणं । तक्कालं तस्सीसो,
सुहलेसो केवली जाश्रो ॥१७॥ श्री चंडरुद्र नाम के गुरु के द्वारा दण्ड से ताडन करने पर भी उसी दिन का नव दीक्षित मुनिशिष्य तत्काल केवल ज्ञान को प्राप्त हुआ था, यह शुभ लेश्या के भाव का ही फल है ॥ १७ ॥ जं न हु भणियो बंधो, ___जीवस्स वहं वि समिइगुत्ताणं । भावो तत्थ पमाणं,
न पमाणं कायवावारो ॥१८॥ समिति गुप्तिवंत साधुओं से उपयोग रखते हुए भी कहीं जीव की हिंसा हो जाय तो भी जीव का वध नहीं माना जाता क्योंकि उसमें अहिंसक भाव यही इसका कारण है । कायव्यापार प्रमाणभूत नहीं माना जाता है ॥ १८ ॥