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भाव कुलकम्
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करते हुए शुभ भाव को प्राप्त हुआ था तथा उससे जाति
स्मरण ज्ञान हुआ था ॥ ७ ॥ खत्रगनिमंतण पुव्वं, वासिय भत्तेण सुद्ध भावेण ।
भुजंतो वरनाणं,
संपत्तो क्रूरगड्डूवि (कूरगड्डुयो ) ॥ ८ ॥
नवकारसी के समय मिले हुए निर्दोष अहार के उपवासी साधुओं को पारणा के लिये निमन्त्रण देते हुए कूरगडू मुनि भी शुद्ध भाव से केवलज्ञान को प्राप्त हुए थे ॥ ८ ॥ पूव्वभवसूरि विरइयनाणासाणपभावदुम्मेहो । नियमानं कायं तो, मासतुसो केवली जा
॥ १ ॥
पूर्व भव में आचार्य पद में की गई ज्ञानाशातना के प्रभाव से बुद्धिहीन हो गये तथा निज नाम के ध्याता "मा तुप् मा रुप" अर्थात् 'किसी पर भी राग या रीस न करें" बताए हुए परमार्थ में लयबद्ध हुए 'मास तुस् मुनि' शुभ भाव से घातक कर्मों का घात कर कैवल्य को प्राप्त हुए थे ॥ ६ ॥