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तपः कुलकम्
की प्राप्ति की थी वे बाहुबली महाराज हमारे दूरित - पाप को दूर करें ॥ २ ॥
थिरं पिथिरं वंक
विउजु दुल्लहं पितह सुलहं ।
दुसज्यं पिसुसज्यं, तवेण संपज्जए कज्जं
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तप के प्रभाव से अस्थिर कार्य भी स्थिर हो जाते हैं, वक्र कार्य भी सरल हो जाते हैं, दुर्लभ भी सुलभ हो जाता हैं और दुःसाध्य भी सुसाध्य बन जाता है ॥ ३ ॥
छट्ठ छट्ठे तवं,
कुमाणो पढमगणहरो भयवं ।
अक्खीण महाणसीचो, सिरिगोयमसामियो जयउ
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छट्ट का सतत तप करते हुए 'अक्षीण महानसी' नाम की महान् लब्धि को प्राप्त किया था ऐसे प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी महाराज जयवन्ता वर्त्ते ॥ ४ ॥
छज्जइ सणं कुमारो
तवबल खेलाइलद्धिसंपन्नो ।