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तपः कुलकम्
[ ७ ]
॥ तपः कुलकम् ॥
सो जयउ जुगाई जिणो, जस्संसे सोहर जडाऊडो ।
तवझाणग्गिपज्जलिश्रंकम्मिंधणधूमल हरिवपंतिव्व
॥ १ ॥
तप तथा स्वाध्याय रूप अग्नि से भस्मीभृत कर लिया है कर्म का इन्धन जिसने ऐसे अग्निधूमशिखा के समान जाज्ज्वल्यमान जटा की केश राशि को धारण करने वाले तथा उससे शोभायमान है स्कंध जिनके ऐसे श्री युगादि प्रभु जयवंता वर्त्ते ।
संवच्छ रिश्र तवेणं
Careerम्मि जो ठश्रो भयवं ।
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पूरिश्रनिययपइन्नो, हर दुराई बाहुबली
॥ २ ॥
एक वर्ष आहार छोडकर 'काउस्सग्ग' मुद्रा से खडे रह कर जिन महात्मा ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की थी, केवलज्ञान