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तपः कुलकम्
निठुश्रखवलिअंगुलिं, ___सुवन्नति पयासंतो ॥५॥
अपने हस्त की अंगुलि को ठीवन के द्वारा जिन्होंने सुवर्ण के समान प्रकाशित कर लिया ऐसे सनत्कुमार राजर्षि तपोबल से 'खेलादिक' लब्धि को पाये हुए आज भी सुशोभित हो रहे हैं ॥५॥ गोबंभगभगम्भिणी,
___बंभिणीधायाइ गुरुअपावाई । काऊण वि कयणं पिब,
तवेण सुद्धो दढप्पहारी ॥ ६ ॥ गौ, ब्राह्मण, गर्भ और गर्भवती ब्राह्मणी स्त्री इन चारों की हत्या करना महापाप है किन्तु इस प्रकार के पापों के प्रायश्चित के रूप में दृढप्रहारी महान् कठोर तप करके शुद्ध हो गये थे वे हमारा कल्याण करें तथा प्रेरणा दे कि हम गौ, ब्राह्मण, गर्भ तथा गर्भवती ब्राह्मणी का मन भी न दुखाये तथा जब जब अवसर मिले इन्हें सन्तुष्ट कर पुन्य लाभ लेवे ॥६॥