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भाव कुलकम्
[८] ॥ भाव कुलकम् ॥ कमठासुरेणरइयम्मि,
भीसणे पलयतुल्ल जलबोले । भावेण केवललच्छि,
विवाहियो जयउ पास जियो ॥१॥ कमठ नाम के असुर के द्वारा किये गये उपद्रव जो भयंकर प्रलय काल के जल के समान भीषण था, उस समय सम भाव को धारण करने से जिन्होंने केवलज्ञान रुप लक्ष्मी का वरण किया वे श्री पार्श्व जिन जयवन्ता वर्ते ॥१॥ निच्चुराणो तंबोलो,
पासेण विणा न होइ जह रागो। तह दाणसीलतवभावणश्रो ___अहलायो सव्व भावविणा ॥२॥
जिस प्रकार से कत्था तथा चूना बिना लगाये पान एवं पास दिये विना वस्त्र रंग नहीं लाता उसी तरह बिना भावना से दान, शील तथा तप रंग नहीं लाते ॥ २॥