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गुणानुराग कुलकम् __ १३ गुणरयणमंडिगाणं,
बहुमाणं जो करेइ सुद्धमणो। सुलहा अन्नमवंमि य,
तस्स गुणा हुंति नियमेणं ॥२७॥ गुणरूपी रत्नों से मंडित पुरुषों का जो शुद्ध मन से चहुत मान करता है उसे आने वाले भव में वे वे गुण निश्चय ही सुलभ हो जाते हैं ।। २७ ।। एयं गुणाणुरायं,
सम्म जो परइ धरणिमज्झम्मि । सिरि सोमसुदर पयं,
सो पावइ सवनमणिज्जं ॥२८|| इस प्रकार जो इस पृथ्वी पर जो सम्यग् गुणानुराग को धारण करता है वह सुशोभित चन्द्र जैसा शांतिमय तथा सर्वजन वंदनीय तीर्थङ्कर रूपी पद तथा सिद्धिपद को प्राप्त करता है । इसमें कर्ता ने 'सोम सुन्दर' अपना नाम अभिव्यक्त किया है ] ।। २८ ।।।
॥ इति श्री गुणानुरागकुलकस्य सरलाथैः समाप्तः ।