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अथ पुण्य कुलकम्
निर्मल शुद्ध शील का अभ्यास, सुपात्र में दान देने का उल्लास, हिताहित में हेय उपादेय का विवेक तथा चार गतियों के दुःखों का त्रास होना ये भी अति पुण्य प्रभाव से ही प्राप्त होता है ॥८॥ दुकडगरिहा सुक्कडा-णुमोयणं पायच्छिततवचरणं । सुहझाणं नवकारो, लभंति पभूयपुराणेहिं ॥१॥ ... कृत पापों की आलोचना-निंदा, गुरु समक्ष गर्दा करना, सुकृत की अनुमोदना, कृत पापों के छेदन का उपाय, गुरु द्वारा निर्दिष्ट तप का आचरण शुभ ध्यान और नवकार मन्त्र का जाप ये भी अति पुण्योदय से ही प्राप्त होता हैं ॥६॥ इयगुणमणि मंडारो,
सामग्गी पाविऊण जेहिं को। विच्छिन्नमोहपासा,
लहंति ते सासयं सुक्खं ॥१०॥ यह मनुष्य जन्म आदि सारी पुण्य सामग्री प्राप्त कर जिन्होंने क्षमा ज्ञानादि गुणों का रत्नभंडार भरा है वे. मोहजित धन्य प्राणी शाश्वत् सुख को प्राप्त करते हैं ॥१०॥
॥ इति श्री पुण्य कुलकस्य सग्लार्थ समाप्तः ॥