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अथ पुण्य कुलकम्
उत्सर्ग और अपवाद तथा निश्चय और व्यवहार में निपुणपणा तथा मन वचन काया से शुद्धि रखना ये सब भी बहुत पुण्य प्रभाव से प्राप्त होता है ।। ५ ।। . अवियारं तारुण्यं, जिणाणं रायो परोवयारत्तं । निक्कं पया य झाणे, लभंति पभूयपुगणेहि ॥६॥ - निर्विकार युक्त यौवन, जिनेश्वर का राग, परोपकार भावना, तथा ध्यान में निश्चलता ये भी बहुत पुण्यों के कारण ही उपलब्ध होते हैं ।। ६ ॥ परनिंदा परिहारो,
अप्पसंसा अत्तणो गुणाणं च । संवेयो निव्वेश्रो, लभंति पभूयपुराणेहि
॥७॥ परनिंदा तथा स्त्र प्रशंसा का त्याग तथा मोक्षाभिलाषा और निवेद-भाव वैराग्य ये भी बहुत पुण्यों से ही प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥ निम्मल सीलब्भासो, दाणुल्लासो विवेग संवासो। चउगइदुहसंतासो, लभंति पभूयपुराणेहिं ॥३॥