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शील महिमा गर्मितं शील कुलकम्
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लीलाइ जेा दलियो, सथूलभदो दिसउ मद्द
॥ १२ ॥
हरि-हर-ब्रह्मन्द्र मद विगलित काम को जीतने वाला श्री स्थूलभद्र सबका कल्याण करें ।। १२ ।। मणहरतारुराणभरे,
जत्थितो वि तरुणि नियरेगणं । सुरगिरि निचलचित्तो, सो वयरमहारिसी जयउ
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अनेक युवाङ्गनाओं द्वारा मनोहर तारुण्य में विषय की प्रार्थना करने पर भी जो मेरु गिरि के समान निश्चल रहे मन से जिन्होंने भोग की इच्छा नहीं की, वे श्री वज्रस्वामी महाराज जयवन्त रहे ।। १३ ॥
थुणिउं तस्स न सका, सङ्घस्स सुदंसस्स गुणनिवहं ।
जो विसम संकडे वि,
पडियो वि खंड सील घणो ॥१४॥
वे सुदर्शन गुण गाने में अग्रगण्य है जिन्होंने भारी संकट के समय शूली पर चढते हुए भी शील धन की रक्षा की थी ॥ १४ ॥