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शील महिमा गभितं शील कुलकम्
सुदरी-सुनंद-चिल्लण
मनोरमा अंजणा मिगावई श्र। जिणसासण सुपसिद्धा,
महासईश्रो सुहं दितु ॥१५॥ सुन्दरी, सुनन्दा, चेलणा, मनोरमा, अंजना और मृगावती आदि जिन शासन में प्रसिद्ध महासति सब का कल्याण करें ॥ १५ ॥ अच्चंकरीम चरिश्र,
सुणिऊणं को न धुणइ किर सीसं । जा अखंडियसीला,
भिल्लवई कयत्थिश्रा वि दढं ॥१६॥ अच्चंकारीभट्टा का आश्चर्य जनक चरित्र सुनकर निश्चय ही कौन मस्तक नहीं नवायगा, कि भिल्लपति के द्वारा अत्यन्त कदर्थना करने पर भी जिसने अपने शील को अखण्ड रखा ॥ १६ ॥ नियमित्तं नियमाया नियजणश्रो,
नियपिया महो वा वि।