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शील महिमा गभितं शील कुलकम्
शीलवईए सीलं
सक्कइ सक्को वि वरिण नेव । रायनिउत्ता सचिवा,
चउरो वि पवंचित्रा जीए ॥१०॥ सती शीलवती के शील को इन्द्र भी यथार्थ रूप से वर्णन करने में समर्थ नहीं है, क्योंकि जिसने राजा द्वारा प्रेषित चारों प्रधानों को छल से छल कर शील की रक्षा की थी ॥ १०॥ सिरी वद्धमाण पहुणा,
सुधम्मला मुत्ति जीइ पट्टवियो। सा जयउ जए सुलसा,
सारयससि विमल सील गुणा ॥ ११ ॥ श्री वर्धमान प्रभु ने भी जिसको धर्मलाभ कहलाया था, वह शरदेन्दु शीतल शीलवती सुलसा सती जगत में जयवन्ती रहे ॥ ११ ॥ हरिहरखंभ पुरंदर
मयभंजण पंचवाणबलदप्पं ।