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शील महिमा गभितं शील कुलकम्
श्री उग्रसेन राजा की पुत्री राजीमती ने शीलवंती स्त्रियों में श्रेष्ठ पद पाया था क्योंकि कामातुर "रहनेमि" गुफा में मोहित होकर शील भंग करना चाहता था उसे भी संयम मार्ग में कपिस स्थिर किये ॥ ५ ॥ पन्जलि यो विहु जलणो,
सीलप्पभावण पाणिग्रं हवई । सा जयउ जए सीश्रा,
जीसे पयडा जस पडाया ॥६॥
जिसके शीलरूप प्रज्वलित प्रभाव से अग्नि भी जल के समान शीतल हो गई, ऐसी माता सीता संसार में युगयुगों तक अपने शीलव्रत के लिये अमर रहे तथा संसार में अपना स्थान शीलवन्ती सती स्त्रियों में प्रथम रूप में पूज्य होती. रहे ॥ ६॥ चालणी जलेण चंपाए,
जीए उग्धाडियं दुवारतियं । कस्स न हरेइ चित्तं,
तीए चरित्रं सुभदाए ॥७॥