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शील महिमा गर्भितं शील कुलकम्
सीलं धम्मनिहाणं, सीलं पावाण खंडणं भणियं ।
सीलं जंतूण जए,
कित्तिमं मंडणं परमं
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शील धर्म का निधान है, शील सारे पापों को नष्ट
प्राणियों का
करने वाला है तथा शील संसार के समस्त शृङ्गार है । शीलं सर्वत्र वैधनम् ॥ ३ ॥ नरयदुवार निरुमणकवाड पुडसहोम रच्छायं ।
सुरलो धवल मंदिरश्रारुहणे पवर निस्सेणि
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शील यह नर्क के द्वार बन्द करने के लिये दो किवाड है तथा देवलोक में आरूढ होने के लिये उत्तम सीडी के समान है ॥ ४ ॥
सिरिउग्गसेणधूया,
राइमई लहइ सील वईरेहं । गिरिविवरगो जीए, रहनेमी ठावि मग्गे
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