SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शील महिमा गर्भितं शील कुलकम् सीलं धम्मनिहाणं, सीलं पावाण खंडणं भणियं । सीलं जंतूण जए, कित्तिमं मंडणं परमं 11 3 11 शील धर्म का निधान है, शील सारे पापों को नष्ट प्राणियों का करने वाला है तथा शील संसार के समस्त शृङ्गार है । शीलं सर्वत्र वैधनम् ॥ ३ ॥ नरयदुवार निरुमणकवाड पुडसहोम रच्छायं । सुरलो धवल मंदिरश्रारुहणे पवर निस्सेणि [ ५७ || 8 || शील यह नर्क के द्वार बन्द करने के लिये दो किवाड है तथा देवलोक में आरूढ होने के लिये उत्तम सीडी के समान है ॥ ४ ॥ सिरिउग्गसेणधूया, राइमई लहइ सील वईरेहं । गिरिविवरगो जीए, रहनेमी ठावि मग्गे || | ||
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy