________________
दान महिमा गर्भितं दान कुलकम्
[ ५.३
अतिदान प्राप्ति से प्रसन्न मन कवि तथा पण्डित सहस्रो के काव्यों द्वारा रचित श्री विक्रमादित्य चरित्र आज भी लोक में प्रसिद्धि को प्राप्त है ।। १५ ।।
तियलोयबंधवेहिं,
तब्भवचरिमेहिं जिणवरिंदेहिं । कय किच्चेहि वि दिन्नं, संवच्छरियं महादाणं
113 €11
तीनों लोकों के बन्धु ऐसे जिनेश्वर - तीर्थकरों जो उसी भव में निश्चय ही मोक्ष जाने के कारण कृत कृत्य हैं । उन्होंने भी सांवत्सरिक दान दिया था ॥ १६ ॥
सिरिसेयंसकुमारो,
निस्सेयससामियो कह न होइ ।
फासु दाणपवाहो, पयासि जेण भरहम्मि
11809911
जिसने निर्दोष पदार्थों के दान धर्म का प्रवाह इस अवसर्पिणी में भरत क्षेत्र में चलाया वे श्री श्रेयांसकुमार मोच अर्थात् निश्चय ही वे तो मोक्ष के
के स्वामी क्यों न हो? स्वामी है ही ॥ १७ ॥