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दान महिमा गभितं दान कुलकम्
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जिणहरमंडिअवसुहो.
दाउं अणुकम्पभत्तिदाणाई । तित्थप्पभावगरेहि,
संपत्तो संबई राया ॥१३॥ जिसने सारी पृथ्वी को जिन चैत्यों से सुशोभित कर लिया ऐसा सन्प्रति राजा अनुकम्पादान तथा सुपात्रदान के कारण शासन प्रभावकों में अग्रगण्य पद पाया था ।।१३।। दाउ सद्धासुद्धे,
सुद्धेकुम्मासए महामुणिणो। सिरिमूल देवकुमारो,
रजसिरि पावित्रो गुरुइं ॥१४॥ श्रद्धा से शुद्ध निर्दोष उड़द के वाकुलों का दान महामुनि को देने से जितशत्रु राजा के पुत्र श्री मूलदेवकुमार विशाल राज्यलक्ष्मी के स्वामी बने ॥ १४ ॥ अइदाणमुहरकविश्रण
विरइ असयसंखकव्ववित्थरि । विक्कमणरिंद चरित्रं,
अजवि लोए परिप्फुरइ... ॥१५॥