________________
१०]
दान महिमा गभितं दान कुलकम्
-
मूलं विणा वि दाउं,
__ गिलाणपडिअरणजोगवत्थूणि । सिद्धो अ रयण कंबल
चंदण वणियो वि तम्मि भवे ॥८॥ रुग्ण मुनियों को औषधि में उपयोगी वस्तुएं मात्र देने से ही रत्नकंवल और वावना चंदन का व्यापारी उसी भव में सिद्धि पद को प्राप्त हुआ था ॥८॥ दाऊण खीरदाणं, ___तवेण सुसिग्रंगसाहुणो धणियं । जणजणिचमक्कारो,
संजायो सालिभद्दो वि ॥ तपश्चर्या से अत्यन्त सुशोभित एवं शोषित देहयष्टि है जिसकी ऐसे मुनिराज को पीर का दान करने से शालिभद्र ने भी सभी के लिये चमत्कार उत्पन्न करे ऐसी ऋद्धि को पाया था ॥६॥ जम्मंतरदाणाश्रो,
उल्लसिाऽपुवकुमलझाणाश्रो।