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दान महिमा गर्भितं दान कुलकम्
कहं सा न पसंसिज्ज्इ, चंदवाला जिदिदाणेणं ।
छम्मासि तव तविश्रो, निव्वविचो जीए वीर जिणो
॥१८॥
छमासिक तप करने वाले घोर तपस्त्री श्री वीर प्रभु को जिसने उड़दों के बांकुल दान कर संतुष्ट किया था वह चन्दनबाला प्रशंसा को क्यों नहीं प्राप्त करें ? ॥ १८ ॥
पढमाई पारणाईं,
करिंसु करंति तह करिस्सति ।
अरिहंता भगवंता, जस्स घरे तेसि धुवसिद्धि
॥१॥
अरिहंत भगवन्तों ने जिनके घर प्रथम पारणे किये, करते हैं और करेंगे उन्हें आत्म सिद्धि अवश्य होगी ॥ १६ ॥
जिणभवण त्रिपुत्थय, संघसरूवेसु सत्तखित्तेसु ।