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पथ पुण्य कुलकम्
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[४] ॥ अथ पुण्य कुलकम् ।।
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संपुन्न इंदियत्तं,
मणुसत्तं विपुल पारियं खितं । जाइ कुल जिणधम्मो,
लभंति पभूयपुराणेहिं ॥१॥ सम्पूर्ण पंचेन्द्रिय युक्त मनुष्यत्व, धर्म सामग्री युक्त आर्य क्षेत्र में अवतार, उत्तम जाति, उत्तम कुल और वीतराग भाषित जैनधर्म ये सब प्रभूत पुण्य से ही प्राप्त होते हैं ॥१॥ जिण चलण कमल सेवा,
___ सुगुरुपयपज्जुवासणं चेव । सज्झाय वायवडतं,
लब्भंति पभूयपुराणेहिं ॥२॥ जिन-अरिहन्त के चरणकमल की सेवा-भक्ति सद्गुरुचरण की पर्युपासना तथा पांचों प्रकार के स्वाध्याय में अप्रमाद ये भी प्रभृत पुण्य से ही प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥