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दान महिमा गर्भितं दान कुलकम्
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॥ दान महिमा गर्भितं दान कुलकम् ॥
परिहरि रजसारो, उप्पाड संजमिक गुरुभारो ।
खंधा देवदूसं, विरंतो जयउ वीर जिणो
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॥ १ ॥
समस्त राज्य समृद्धि का त्याग किया, संयम का गुरुभार वहन किया, तथा दीक्षा के समय इन्द्र प्रदत्त देवदुष्य अपने स्कंध से आते हुए विप्र को दान में दे दिया, ऐसे श्री वीर प्रभु जयवन्त वर्त्ते ॥ १ ॥
धमत्थ कामभेया,
तिविहं दाणं जयम्मि विक्खायं । तहवि जिदि मुणिणो, धम्मिय दाणं पसंसंति
॥ २ ॥
धर्मदान, अर्थदान और कामदान ये तीन प्रकार के दान प्रसिद्ध हैं फिर भी जिनेश्वर की आज्ञा पालने वाले मुनिजन धर्मदान को ही विशेष प्रेम तथा प्रशंसा करते हैं ॥ २ ॥