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m] .. भय पुण्य कुलकम् सुद्धो बोहो सुगुरुहि,
संगमो उक्समो दयालुत्तं । दक्खिणं करणजो,
लभंति पभूयपुराणेहि शुद्ध बोध (वीतराग वचन बोध), सुगुरु समागम, उपशम भाव, दयालुता, दाक्षिण्य तथा इन्द्रियों पर विजय ये उत्तरोत्तर बहुत पुण्य से ही प्राप्त हो सकते हैं ॥ ४ ॥ सम्मत्ते निचलतं,
वयाण परिपालणं अमाइत्तं । पढणं गुणणं विणश्रो,
लभंति पभूयपुराणेहि ॥४॥ सम्यक्त्व में निश्चलता, व्रतों का निरतिचार पालन करना, निर्मायित्व, पढणा गणना तथा विनय ये सब बहुत पुण्य से ही प्राप्त होते हैं ।। ४ ।। . उस्सग्गे श्रववाये,
निच्छय ववहारयम्मि निउणत्तं । मणवयणकायसुद्धी,
लभंति पभूयपुराणेहिं ॥५॥