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गुरु प्रदक्षिणा कुलकम्
दारिद्द अज गयं,
दिठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥ ५ ॥ __ आपका मुख कमल दर्शन करने पर मैं ऐसा धन्य हो मया हूं कि जैसे मेरे-आंगन कामधेनु का पदार्पण हुआ हो, तथा सुवर्ण की दृष्टि हुई हो और जैसे मेरा दारिद्रय ही दूर हो गया हो। तात्पर्य यह है कि सद्गुरु का दर्शन सारे सुखों को देने वाला होता है ॥ ५ ॥ चिंतामणिसारिच्छ,
.. सम्मत्तं पावियं मए अज। संसारो दूरीको,
____ दिठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥ ६ ॥ - हे सद्गुरु ! आपके मुख कमल के दर्शन करने पर मुझे चिंतामणि रत्न के समान सम्यक्त्व-समकित रत्न प्राप्त हुआ है क्योंकि इस रत्न के प्राप्त होने पर संसार से मुक्ति मिलती है । अर्थात् गुरु दर्शन से मिथ्यात्व का नाश होकर समकित की प्राप्ति होती है ॥ ६ ॥ जा ऋद्धि अमर गणा,
भुजंता पियतमाइ संजुत्ता ।