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अब संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम्
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सकिय मुवहिमाई,
पमजिउ निक्खिवेमि गिरहेमि। जइ न पमज्जेमि तश्रो,
तत्थेव कहेमि नमुकारं ॥१६॥ आदान निक्षेपणा समिति-स्वयं की कोई भी उपधि प्रमुख कोई वस्तु पूजी-प्रमार्जित कर भूमि पर रखू वथा ग्रहण करूँ, तथा यदि इसमें त्रुटि हो जावे तो एक चार नवकार गिनें ॥१६॥ जत्थ व तत्थ व उज्झणि,
दंडगउ वहीण अंबिलं कुब्वे । सयमेगं सज्झाय,
उस्सग्गे वा गुणेमि अहं ॥१७॥ दण्ड प्रमुख अपनी उपधि जहां तहां (अस्त व्यस्त) रक्खी जावे तो एक आयम्बिल करूँ या खड़े खड़े काउस्सग्ग मुद्रा से एक सौ गाथा का स्वाध्याय करूं ॥१७॥ मत्तगपरिट्ठवणम्मिश्र,
जीव विणासे करेमि निम्वियं ।