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अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम्
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'मिच्छामि दुक्कडं' ऐसा कहना भूल जाऊँ, तो ज्योंही याद आवे मैं एकवार नवकार मन्त्र का जाप करूँ ॥३८॥ सम्वत्थवि खलिएK
मिच्छा कारस्स अकरणे तह य । सयमनाउ वि सरिए,
कहियन्वो पंचनमुक्कारो ॥३॥ जहां भी उपयुक्त क्रिया में स्खलना हो तो मैं किसी के भी हितैषी के कहने पर मैं नवकार मन्त्रका कम से कम एक बार जाप करूँ ॥३६॥ वुडस्स विणापुच्छ,
विसेसवत्थु न देमि गिराहेवा। अन्नं, पि श्र महकज्जं,
वुढं पुच्छिय करेमि सया ॥४॥ वृद्धों की आज्ञा विना कोई विशेष या श्रेय वस्तु वस्त्रादि अन्य के पास से नहीं लू । दूभी नहीं, नित्य किसी भी छोटे बड़े कार्य हेतु वृद्धों की अ.ज्ञा लू॥४०॥ दुब्बल संघयणाण वि,
ए ए नियमा सुहावहा पाये।