________________
अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम्
[३३ '
पात्रादि कुल पन्द्रह से अधिक न रखू। अशन, पान खादिम तथा स्वादिम चारों प्रकार के आहार का लेश मात्र भी संनिधि न करू. रोगादि में भी नहीं, नित्य आवश्यकतानुसार ही लाऊं, संग्रह नहीं कर ॥ २४ ॥ महारोगे वि अकादं,
न करेमि निसाइ पाणीयं न पिबे। सायं दो घडीयाणं,
मझ नीरं न पिबेमि ॥२५॥ बड़े रोगों में भी क्वाथ या उकाला करा कर वापरूँ नहीं, रात्रि में जलपान न करूं । सूर्यास्त से पूर्व दो घड़ी में पानी न पीऊँ, उसके पश्चात् अशनादिक आहारिक क्रियायें तो करने की बात ही नहीं ॥ २५ ॥ अहवत्थमिए सूरे,
काले नीरं न करेमि सयकाले। अणहारो सह संनिहि, ... मवि नो ठावेमि वसहीए ॥२६॥
सूर्यास्त पूर्व ही आहार पानी से निवृत्त हो जाऊँ, तथा आहार सम्बन्धी पञ्चक्खाण कर लू तथा अणाहारी औषध