________________
अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् .
[२७
.
.
अपमजियगमगम्मि,
श्रसंडासपमजिउंच उवविसणे। पाउं छयणं च विणा,
उवविसणे पंच नमुक्कारा ॥१२॥
दिन में दृष्टि से या रात्रि में दंडासन से प्रमाय बिना चले तो अंग पडिलेहण प्रमुख संडासा या आसन प्रमाl बिना बैठने पर कटासन बिना भूमि पर बैठने पर तत्काल पांच नमस्कार, खमासमण या पांच नवकार मन्त्र का जाप करना चाहिये ॥ १२॥
उग्घाडेण मुहेणं,
___ नो भासे अहव जत्तिया धारा । भासे तत्तिय मित्ता,
लोगस्स करेमि काउस्सगं ॥१३॥
२. भाषा समिति-मुँहपत्ति रखे बिना नहीं बोलना चाहिये, फिर यदि मुहपत्ति बिना बोला गया हो तो उतनी ही बार इरियावही पूर्वक 'एक लोगस्स' का काउल्सग्ग करू ॥१३॥