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अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम्
अविहीइ विहरिऊणं,
परिठवणे अंबिलं कुब्वे ॥१८॥ पारिठावणिया समिति-लघु नीति, बडीनीति या श्लेष्मादि भाजन उलटते समय किसी जीव का विनाश हुआ हो तो निवी करूँ तथा अविधि से (सदोष) आहार-पानी बहोर कर परठवना पड़े तो एक आयंबिल करूँ ।। १८॥ अणुजाणह जस्सुग्गह,
___ कहेमि उच्चार मत्तगठाणे। तह सन्नाडगलगजोग,
कप्पतिप्पाइ वोसिरे तिगं ॥१॥ बडी नीति या लघु नीति आदि करने के या परठवन के स्थान पर 'अणुजाणह जस्सुग्गहो' प्रथम कहूं, उसी प्रकार इनमें प्रयुक्त हुए तथा धोवन जल, और लेप एवं डगल प्रमुख परठवने के बाद तीन बार 'वोसिरे' कहूं ॥१६॥.
तीन गुप्ति के पालने के लिये । रागमये मणवयणे,
इक्विक्कं निम्वियं करेमि अहं।