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गुरु प्रदक्षिणा कुलकम्
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[२] ॥ अथ गुरु प्रदक्षिणा कुलकम् ॥
[ सरलार्थ-सहितम् [ गोत्रम सुहम्म जंबु,
पभवो सिज्जंभवाई पायरिया । अन्नेवि जुगप्पहाणा,
पई दिठे सुगुरु ते दिट्टा ॥१॥ हे सद्गुरो ! श्री गौतमस्वामी, श्री सुधर्मास्वामी, श्री जंबुस्वामी, श्री प्रभवस्वामी और सिज्जंभव आदि आचार्य भगवंत तथा अन्य भी युगप्रधान महापुरुषों का दर्शन
आपके दर्शन करने मात्र से फल लाभ प्राप्त हो जाता है। अर्थात् मेरे जैसे जीव के लिये इस समय में आपका दर्शन उन भगवन्तों के दर्शन के समान है ॥ १ ॥ अज कयत्थो जम्मो, अज कयत्थं च जीवियं मम। जेण तुह दंसणामय-रसेण सिचाई नयणाई ॥२॥ ___ आज मेरा जन्म कृतार्थ हुआ, आज मेरा जीवन सफल हुआ क्योंकि आपके दर्शन स्वरूप अमृत से मेरे नेत्र सिंचित हुए, अर्थात् आपके दर्शन से मैं कृत कृत्य हो गया । ३ ।।