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२४] अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् अण्णेसिं पढणत्थं,
पणगाहायो लिहेमि तह निच्चं । परिवाडीयो पंच य,
देमि पदंताण पइदियह ॥५॥ पुनः मैं दूसरों के अध्ययन हेतु पांच गाथा पुस्तक में लिखू तथा अध्ययनार्थियों को नियमतः पांच पांच गाथाएँ पढ़ाऊँ ॥५॥ वासासु पंचसया, __ अट्ट य सिसिरे य तिन्नि गिम्हमि। पइदियह सज्झायं,
करेमि सिद्धंतगुणगणेणं ॥६॥ पुनः सिद्धान्त पाठ करते हुए वर्षा ऋतु में पांच सौ, शिशिर में आठसौ, ग्रीष्म में तीन सौ गाथा के प्रमाण से नित्य सज्भाय ध्यान करूँ ॥ ६ ॥ परमिट्टिनवपयाणं,
सयमेगं पइदिणं सरामि अहं । अह दसणायारे,
गहेमि नियमे इमे सम्मं ॥७॥